मातृत्व का अर्थ
मैं कहता हूं कि भारत में कई सालों तक बच्चा पैदा नहीं होना चाहिए। मगर ज्यादातर महिलाओं ने कहा," स्त्री में जो मातृत्व की भावना होती है, उसे वह कैसे सेटिस्फाई करे?"
कइयों ने कहा, नारी पूर्णता को प्राप्त नहीं करती, जब तक वह मां नहीं बनती।
उत्तर----
पहली बात,
हिंदुस्तान में कितनी स्त्रियां पूर्णता को प्राप्त हो गयीं हैं?
हर स्त्री एक नहीं दर्जन और डेढ़ दर्जन बच्चों की मां है- पूर्णता कहां है?
ये बच्चे उसे पूरे जीवन को खा गए।
दूसरी बात,
कि स्त्री मां बनने से ही मातृत्व को पाती है, यह भी सही नहीं है। क्योंकि लगभग सारी स्त्रियां बच्चे पैदा करती हैं, मां बनती हैं, पर मातृत्व की कोई गरिमा, कोई ओज, कोई तेज दिखाई तो नहीं देता।
इसलिए मेरी परिभाषा दूसरी है। मेरी परिभाषा में मां बन जाना जरूरी नहीं है, मातृत्व को उपलब्ध होने के लिए। मां तो सारे जानवर अपनी मादाओं को बना देते हैं।
सारी प्रकृति, जहां-जहां मादा है, वहां-वहां मां है।
लेकिन मातृत्व कहां है?
इसलिए मातृत्व और मां को एकार्थी न समझे।
यह हो सकता है कि कोई मां न हो और मातृत्व को उपलब्ध हो, और कोई मां हो और मातृत्व को न उपलब्ध हो।
मातृत्व कुछ बात ही और है। वह प्रेम की गरिमा है।
मैं चाहूंगा कि स्त्रियां मातृत्व को उपलब्ध हों, लेकिन उस उपलब्धि के लिए बच्चे पैदा करना बिल्कुल गैर-जरूरी हिस्सा है। हां, उस मातृत्व को पाने के लिए हर बच्चे को अपने बच्चे जैसा देखना, निश्चित अनिवार्य जरूरत है।
उस मातृत्व के लिए ईर्ष्या, द्वेष, जलन इनका छोड़ना जरूरी है। बच्चों की दर्जन इकट्ठी करनी नहीं।
फिर हमारे देश में जहां इतने बच्चे बिना माताओं के हों, वहां जो स्त्री, अपना बच्चा पैदा करना चाहती हो, वह मातृत्व को कभी उपलब्ध नहीं होगी।
जहां इतने बच्चे बिलख रहे हैं, अनाथ, मां की तलाश में, वहां तुम्हें सिर्फ इस बात की फिकर पड़ी हो कि बच्चा तुम्हारे शरीर से पैदा होना चाहिए।
उस क्षुद्र विचार को पकड़ कर कोई मातृत्व जैसे महान विचार को नहीं पा सकता।
With grace, love & peace,
HolyKarma.au
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