परमात्मा का मन्दिर
परमात्मा का मन्दिर तो वो ही है, जो उसने बनाया है, और वो वहीं रहता है।
प्रत्येक जीव, कण कण , ज़र्रा ज़र्रा, प्रत्येक मनुष्य उसका मन्दिर है, इसके अतिरिक्त परमात्मा का और कोई मन्दिर नही है।
जो मन्दिर हमने बनाए है, वे हमारे मन्दिर है, परमात्मा के नही, हम उन्हें अपना मन्दिर कहते है, वहाँ से परमात्मा को तो हमने स्वयं कभी का बिदा कर दिया है।
परमात्मा वहाँ रहे भी तो कैसे रहे, क्योंकि हम स्वयं अपने बनाए मन्दिर में किसी अन्य को जो हमारी मान्यताओं को नही मानता, उसे घुसने नहीं देते, और जहाँ मनुष्य मनुष्य में भेद किया जा रहा हो, वहाँ परमात्मा कैसे रह सकता है।
प्रत्येक मनुष्य उसका मन्दिर है, और कहीं जाने की ज़रूरत ही नही, यदि कहीं और गये तो असली मन्दिर से चूक जायेंगे।
With grace, love & peace,
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