वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि मस्तिष्क का आधा हिस्सा बिलकुल निष्क्रिय पड़ा है। और बहुत चकित होते हैं कि क्या कारण होगा, क्यों मस्तिष्क का आधा हिस्सा बिलकुल निष्क्रिय है, किसी काम में नहीं आ रहा है?
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प्रकृति कोई चीज ऐसी पैदा नहीं करती जो बेकाम हो, पैदा करती है तो काम होना ही चाहिए। आधा मस्तिष्क काम कर रहा है, आधा मस्तिष्क बिलकुल बंद पड़ा है। वही आधा मस्तिष्क सहस्रार के क्षण में सक्रिय होता है। उसी आधे मस्तिष्क से प्रार्थना जन्मती है। उसी आधे मस्तिष्क से ध्यान उपजता है। वह आधा मस्तिष्क तभी सक्रिय होता है, जब कोई बुद्धत्व को उपलब्ध होता है, तब तक सक्रिय नहीं होता।
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ऐसा ही समझो जैसे तुम्हारे घर में एक द्वार बंद है, और तुम कई बार सोचते हो यह द्वार कहां खुलता होगा? और सब द्वार तो तुमने देखे हैं, मगर यह द्वार किस दिशा में ले जाता है? किस खजाने की तरफ? पता नहीं किस गुफा में, कहां ले जाता है? जो व्यक्ति अपने भीतर थोड़ा-सा खोजबीन करेगा, उसे जल्दी ही सहस्रार के द्वार पर जिज्ञासा उठनी शुरू हो जाएगी।
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विज्ञान तो अब इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि मस्तिष्क का आधा हिस्सा निष्क्रिय है; योग तो आज पांच हजार साल से यह कह रहा है कि मस्तिष्क का आधा हिस्सा निष्क्रिय है। उसको सक्रिय करने के बहुत उपाय किए हैं योग ने। अनेक आसन खोजे हैं उस आधे को सक्रिय करने के लिए। उस आधे को सक्रिय करने के लिए ही शीर्षासन का उपयोग किया गया है, ताकि खून की धारा उस आधे मस्तिष्क को जाकर चोट करने लगे, उसे सक्रिय करे। श्वास की प्रक्रियाएं विकसित की गई हैं। क्योंकि मस्तिष्क का भोजन आक्सीजन है, मस्तिष्क जीता है आक्सीजन पर। जितनी ज्यादा प्राणवायु तुम लेते हो, उतना ही मस्तिष्क सक्रिय होता है।
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इसलिए रात अगर तुम सोने के पहले पंद्रह मिनिट प्राणायाम कर लो, फिर रात--भर न सो सकोगे--मस्तिष्क सक्रिय हो जाएगा। इसलिए रात भूल कर भी प्राणायाम नहीं करना चाहिए, या विपस्सना जैसी ध्यान की विधि रात में नहीं करनी चाहिए, अन्यथा नींद खराब हो जाएगी।
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